सटीक समाचार, पटना।
बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) करीब आने के साथ ही विकासशील इंसाफ पार्टी (वीआइपी) के संस्थापक मुकेश साहनी के अगले सियासही कदम को लेकर सस्पेंस पैदा हो गया है। मुकेश साहनी अभी महागठबंधन के साथ हैं और 2020 में विधानसभा चुनाव से पहले भी महागठबंधन के साथ थे, लेकिन ऐन मौके पर एनडीए के साथ आ गए थे। अब भाजपा ने सहनी के एक बार फिर एनडीए के साथ आने की उम्मीद जताई है।
दिलीप जायसवाल बोले- महागठबंधन में बात न बनी तो एनडीए में लौट आएंगे मुकेश सहनी
बता दें कि मुकेश सहनी का बिहार की राजनीति में विशेष स्थान है और उनका वोट बैंक खास मायने रखता है। बिहार भाजपा के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने मंगलवार को सहनी को लेकर बड़ा बयान दिया। जायसवाल ने कहा कि मुकेश सहनी अपना राजनीतिक कद बढ़ाने के लिए महागठबंधन में गए थे। यदि वहां उनकी बात नहीं बनी तो वह एनडीए के साथ वापस आ सकते हैं।
2020 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन को छोड़ी थी
बता दें कि मुकेश सहनी 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) से पहले महागठबंधन में थे। वहां सीटाें को लेकर उनकी बात नहीं बनी तो वह एनडीए में शामिल हो गए। इस चुनाव में उनकी विकासशील इंसाफ पार्टी ने चार सीटें जीतीं। वैसे सहनी खुद विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन एनडीए ने उनको विधान परिषद भेजा। मुकेश सहनी को नीतीश कुमार सरकार (Nitish Kumar Government) में मंत्री बनाया गया।
2024 में लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए छोड़कर महागठबंधन में आ गए थे
बाद में मुकेश सहनी की एनडीए में तकरार पैदा हो गई और उनको इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। उनकी पार्टी वीआइपी के सभी चार विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद, सहनी 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में शामिल हो गए। अब वह 2025 के विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में अपनी पार्टी को महत्व दिए जाने की उम्मीद कर रहे हैं।
मंगलवार को दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ तपस्वी यादव की बैठक के लिए सहनी को नहीं ले जाने के बाद भाजपा ने सहनी का नाम लिए बगैर महागठबंधन में अति पिछड़ी और अनुसूचित जाति के नेताओं की उपेक्षा की बात कही है। भाजपा सांसद डा. भीम सिंह ने एक बयान में कहा कि तेजस्वी यादव मंगलवार को राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बैठक के लिए मनोज झा और संजय यादव को साथ लेकर गए, लेकिन इस तरह की उच्चस्तरीय बैठक के लिए अति पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति के किसी नेता को ले जाना उचित नहीं समझा गया।